प्रिय विद्यार्थी बंधुओं, नमस्कार,
- आप यदि इसलिए पढ़ रहे हैं कि आपको सरकारी सेवा में लिया जाये। तो निसन्देह आप सरकारी सेवाओं में आरक्षण के समर्थन या विरोध में कुछ न कुछ विचार अवश्य करते होंगे।
- भारत में जब बर्तानियाँ सरकार ने सरकारी सेवाओं के लिए भारतियों को आमन्त्रित किया तब किसी ने भी उसमे रूचि नहीं ली। कारण यह था कि सभी लोग अपने अपने जातिगत जॉब में लगे थे, जो उनके लिए पीढ़ी दर पीढ़ी स्थाई तौर पर आरक्षित रोजगार था, कोई भी बेरोजगार नहीं था।
- जब विशेष झांसा दिया गया तब उनका तर्क था कि अगर हम नोकरी में आजायेंगे तो दो समस्याएँ पैदा होंगी। एक यह की हमारी अगली पीढ़ी क्या करेगी ! दूसरी यह की बुढ़ापे में हमारा क्या होगा !
- तब उन्होंने सेवा निवृति के बाद दो लाभ देने की बात कही, 1. घर के किसी भी एक सदस्य को उसी विभाग में नोकरी देना 2. सेवानिवृति वेतन Retirement Pension देना, तय किया।
- कुछ समय बाद जब एक तरफ बेरोजगारी फैली और दूसरी तरफ सेवाकर्मियों का पश्चिमी पहनावा तब सरकारी सेवा आकर्षित करने लगी।
- वे तो व्यापारी थे अतः उनकी गणना अलग तरीके की थी लेकिन जब सत्ता हस्तान्तरण हुआ और भारत के राजनीतिज्ञों के पास सत्ता आई तो न सिर्फ भाषा बल्कि गणना भी बदल गयी।
- एक समय था जब हर घर में गाय थी और सोने-चाँदी के आभुषण थे लेकिन जब राजनीति में नव्बौद्धिक वर्ग आया तो गरीबी को भी भारतीयों की जिम्मेदारी मानने लगा और बेरोजगारी से त्रस्त वर्गों को दलित,पिछडा हुआ इत्यादि कह कर स्वम को मसीहा साबित करने लग गए और इस तरह समस्या को दिशाहीनता में उलझा दिया।
- अब आप सभी जो जो आरक्षण के समर्थक और विरोधी है उनको यह समझना चाहिए कि
- आप किसी न किसी जाति से सम्बन्ध रखते हैं और हर जाति का एक परम्परागत जॉब है जिसमे वह निपूण,दक्ष और पारंगत है।
- हर रोजगार दो भागों में विभाजित है। एक है निजी Self-employed स्वरोजगार दूसरा है उसी विषय के सरकारी विभाग में सेवाकर्मी।
- निजी रोजगार में भी गृह-उद्योग से लेकर भारी औद्योगिक इकाईयों के मालिक से लेकर श्रमिक तक,या प्राकृतिक उत्पादन में कृषि-श्रमिक से लेकर भूस्वामी तक विभिन्न स्तर होते हैं।
- इसी तरह उतने के उतने सरकारी विभाग हैं जिनमे भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर सचिव तक विभिन्न स्तर हैं।
- इसी तरह उन विभागीय मंत्रालयों में राजनेता मंत्री होते हैं।
- अब आप एक ऐसी व्यवस्था की कल्पना करें कि या तो आप वैवाहिक संबंधों तक में जाति के बंधन से मुक्त हो जाते हैं या फिर एक ऐसी आरक्षण प्रणाली बनायी जाए कि जो जिस विषय विशेष जाति से सम्बन्ध रखता है या रखना चाहता है रख सकता है यानी जाति-परिवर्तन कर सकता है लेकिन वह चाहे तो स्वतन्त्र स्वरोजगार में हो या उसी विषय विशेष के सरकारी विभाग में जाना चाहे या फिर राजनीति में जाना चाहे उसके लिए वह विषय आरक्षित होगा।
- इस तरह भ्रष्टाचार का अर्थ होगा अपनी ही जात=बिरादरी से धोका।
- शुद्ध आचार-विचार का अर्थ होगा अपने विभाग,मंत्रालय और जाति-बिरादरी को सुरक्षित,संरक्षित और समृद्ध करने में अपनी योग्यता का उपयोग करना क्योंकि तब उनकी अगली सन्तति की समृद्धि का दायित्व भी तो जुड़ जायेगा।
- इस तरह यदि आप सामाजिक कार्यों में रूचि रखते हैं तो इन ब्लोग्स पर नियमित विजिट करें और इस पोस्ट की कॉपी करके आगे से आगे मेल करें।
- http://gismindia.blogspot.com/ वैश्विक बौद्धिक विद्यार्थी आन्दोलन।
- http://drnaradone.blogspot.com/ सामाजिक पत्रकारिता
- http://prajaam.blogspot.com/ भव्य महाभारत संरचना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें