इस तरह एक तरफ़ तो पूर्वकाल की सभी औद्योगिक इकाइयाँ बन्द हो गईं क्योंकि विदेश व्यापार बन्द हो गया था, बौद्ध-जैन व्यापारी लूट लिए गये थे। तब औद्योगिक श्रमिकों में बेरोज़गारी भी फैल रही थी।
दूसरी तरफ़ सभी काम खुद करने वाली जाति के रूप में हूणों ने अपनी पहचान बनाई और भारत में अनेक जातियों में बँटे लोग भी मजबूरन कृषि-पशुपालन कार्य में आने लगे। जाति का उच्चारण जात भी होता है। अतः पहले तो ‘‘एक ही जात‘‘ नाम से पहचान बनी फिर सिर्फ 'जात' नाम से पहचान बनी। चूँकि हूण जहाँ से आये थे वहाँ त का उच्चारण ट होता है अतः ये 'जाट' कहलाये। भारत की करीब-करीब सभी किसान जातियाँ जाटों में से ही निकली हुई हैं। पंजाब के सिक्खजट्ट, राजस्थान के बिश्नोई, गुजरात के पटेल, महाराष्ट्र के पाटिल, पीटल तथा सीरवी और बिहार के कुड़मी ये सभी जाटों से निकले हुए हैं।
भारत में कुछ जातियाँ सिर्फ पशुपालन पर निर्भर हैं। जब हूण से जात बने जाटों ने पशुपालन भी शुरू कर दिया तो उन जातियों पर आर्थिक संकट आया तब उन्होंने जाटों से संघर्ष किया। अन्ततः एक समझौता हुआ और वनो में विचरण करते हुए पशुओं को पालने वाली जातियों के लिए वन क्षेत्र सुरक्षित किया और उन्होंने अपनी अलग सत्ता बनाई। इनमें अधिकांश वे लोग थे जो पहले से या तो व्यापार करते थे या फिर औद्योगिक श्रमिक थे। ये लोग शक कहलाये, जिन्होंने अपनी राष्ट्रीय शक संवत अलग से चलाई। इस जाति में आने वाले बिणजारे, बणजारे भी कहे जाते हैं। इनमें भेड़-पालकों, ऊँट पालकों के साथ गोपालक भी होते हैं। इन्हें रायका, रेबारी, मीणा, वनबावरी इत्यादि भी कहा जाता है। इनमें बहुसंख्यक वर्ग गुर्जर कहलाता है। यादव भी इसी में आते हैं। वर्तमान के यादव कृष्ण-बलराम काल के नहीं हैं। इनका उदय भी उसी काल खण्ड में एक जाति विशेष के रूप में हुआ था। इन्होंने मध्य भारत के दक्षिण-पूर्व में अपना साम्राज्य भी स्थापित किया था।
जिस विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत चलती है, उसने बौद्ध-जैन व्यापारियों के क़र्ज़ से सभी को मुक्त कराया था।
जिस विक्रमादित्य के पराक्रम की कथाऐं चलती है उस विक्रमादित्य को इतिहास से इसलिए निकाल दिया क्योंकि उसने जो किया वह उन यक्षों[यहूदियों] के विरूद्ध था जो वित्तीय ऋण से बंधक बनाने वाली सत्ता के संचालक थे,हैं और रहेंगे। सुधरेंगे नहीं,ईमान नहीं ला पायेंगे।
विक्रमादित्य सनातन धर्म के समर्थन में था तथा औद्योगिकीकरण के विरूद्ध था। अतः वह उस यूरोपियन एवं यहूदी समाज के आचरण के विरूद्ध आचरण था जो सोलहवी से अट्ठारहवीं शताब्दी में अपने तरीक़े से भारत का इतिहास लिखवा रहे थे।
विक्रमादित्य के चलाये क्रान्तिकारी आन्दोलन के काल में निम्नलिखित कार्य हुए थे...
पूरे भारत से उन यांत्रिक उपकरणों एवं फाउण्डरियों को पूरी तरह काल कलवित कर दिया गया जो चाणक्य ने स्थापित की थी और अशोक के समय फली-फूलीं और उनके विकास से बड़े-बड़े वित्तेश तो पैदा हुए लेकिन शैक्षणिक एवं राजनैतिक दृष्टि से भारत संज्ञा शून्य हो गया था। विक्रमादित्य ने उस भारत को महान भारत बनाया था।
ये शक और हून ही जाट और गुर्जर हैं, और ये पूर्णतः बाहर से आयी हुई जातिया हैं..इन्हें किसी और जाति से जोड़ना गलत हैं. इन लोगो का रहन सहन, कद काठी, बोली, जिनोलोजी भारत की बाकी की जातियों से बिल्कुल अलग हैं चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इनका दमन किया था. उसके बाद ये लोग यंही के होकर के रह गए.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल ग़लत।बामण बाणिये या यूं कहें जैनी सब थाईलैंड कंबोडिया से आए थे।जाट गुर्जर ओर अहिर यहीं की कबिलाई किसान जाति है।
हटाएंPraveen ji ekdam satya
हटाएंजाट शक हैं तथा गूजर कुषाणों और हूणों के वंशज हैं| चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शको का दमन किया था| हूणों ने तो गुप्त साम्राज्य को ढा कार उत्तर भारत में पचास साल रज किया था| उसके बाद गूजरों के प्रतिहार वंश ने उत्तर भारत के अंतिम हिंदू साम्राज्य का निर्माण किया| गूजर प्रतिहारो ने ३०० वर्ष तक उत्तर भारत की अरबी मुसलमानों से रक्षा की थी|
जवाब देंहटाएंप्रतिहार वंश गुर्जर नही है क्षत्रिय वंश है
हटाएंha tm rajputo khoge ki partihar lga hai uske sth to wo ek upaadhi thi or uska proof bhi pad le or check kr wa lena sanskrit or hindi dono mai hai
हटाएंवीर गुर्जर - प्रतिहार राजाओ के ऐतिहासिक अभिलैख प्रमाण
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1. सज्जन ताम्रपत्र (871 ई. ) :---
अमोघ वर्ष शक सम्वत
793 ( 871 ई . ) का
सज्जन ताम्र पञ ) :---- I
इस ताम्रपत्र अभिलेख मे लिखा है। कि राष्ट्र कूट शासक दन्तिदुर्ग ने 754 ई. मे "हिरण्य - गर्भ - महादान " नामक यज्ञ किया तो इस शुभ अवसर पर गुर्जर आदि राजाओ ने यज्ञ की सफलता पूर्वक सचालन हेतु यज्ञ रक्षक ( प्रतिहार ) का कार्य किया । ( अर्थात यज्ञ रक्षक प्रतिहारी का कार्य किया )
( " हिरणय गर्भ राज्यनै रुज्जयन्यां यदसितमा प्रतिहारी कृतं येन गुर्जरेशादि राजकम " )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका -- 18 , पृष्ठ 235 , 243 - 257 }
👇👇👇👇👇Gurjar jati ka shilalekha h wo Gurjar raja the
2. सिरूर शिलालेख ( :----
यह शिलालेख गोविन्द - III के गुर्जर नागभट्ट - II एवम राजा चन्द्र कै साथ हुए युद्ध के सम्बन्ध मे यह अभिलेख है । जिसमे " गुर्जरान " गुर्जर राजाओ, गुर्जर सेनिको , गुर्जर जाति एवम गुर्जर राज्य सभी का बोध कराता है।
( केरल-मालव-सोराषट्रानस गुर्जरान )
{ सन्दर्भ :- उज्जयिनी का इतिहास एवम पुरातत्व - दीक्षित - पृष्ठ - 181 }
3. बडोदा ताम्रपत्र ( 811 ई.) :---
कर्क राज का बडोदा ताम्रपत्र शक स. 734 ( 811-812 ई ) इस अभिलेख मे गुर्जरैश्वर नागभट्ट - II का उल्लेख है ।
( गोडेन्द्र वगपति निर्जय दुविदग्ध सद गुर्जरैश्वर -दि गर्गलताम च यस्या नीतवा भुजं विहत मालव रक्षणार्थ स्वामी तथान्य राज्यदद फलानी भुडक्तै" )
{ सन्दर्भ :- इडियन एन्टी. भाग -12 पृष्ठ - 156-160 }
4. बगुम्रा-ताम्रपत्र ( 915 ई. )
इन्द्र - तृतीय का बगुम्रा -ताम्र पत्र शक सं. 837 ( 915 ई )
का अभिलेख मे गुर्जर सम्राट महेन्द्र पाल या महिपाल को दहाड़ता गुर्जर ( गर्जदै गुर्जर - गरजने वाला गुर्जर ) कहा गया है ।
( धारासारिणिसेन्द्र चापवलयै यस्येत्थमब्दागमे । गर्जदै - गुर्जर -सगर-व्यतिकरे जीणो जनारांसति।)
{ सन्दर्भ :-
1. बम्बई गजेटियर, भाग -1 पृष्ट - 128, नोट -4
2. उज्जयिनी इतिहास तथा पुरातत्व, दीक्षित - पृष्ठ - 184 -185 }
5. खुजराहो अभिलेख ( 954 ई. ) :----
चन्दैल धगं का वि. स . 1011 ( 954 ई ) का खुजराहो शिलालैख सख्या -2 मे चन्देल राजा को मरु-सज्वरो गुर्जराणाम के विशेषण से सम्बोधित किया है ।
( मरू-सज्वरो गुर्जराणाम )
{ एपिग्राफिक इडिका - 1 पृष्ठ -112- 116 }
6. गोहखा अभिलेख :--
चैदिराजा कर्ण का गोहखा अभिलैख मे गुर्जर राजा को चेदीराजालक्ष्मणराजदैव दवारा पराजित करने का उल्लेख किया गया हे ।
( बगांल भगं निपुण परिभूत पाण्डयो लाटेरा लुण्ठन पटुज्जिर्जत गुज्जॆरेन्द्र ।
काश्मीर वीर मुकुटाचित पादपीठ स्तेषु क्रमाद जनि लक्ष्मणराजदैव )
{ सन्दर्भ :- 1. एपिग्राफिक इडिका - 11 - पृष्ठ - 142
2. कार्पस जिल्द - 4 पृष्ठ -256, श्लोक - 8 }
7. बादाल स्तम्भ लैख:--
नारायण पाल का बादाल सत्म्भ लैख के श्लोक संख्या 13 के अनुसार गुर्जर राजा राम भद्रदैव ( गुर्जर - नाथ) के समय दैवपाल ने गुर्जर- प्रतिहार के कुछ प्रदेश पर अधिकार कर लिया था ।
( उत्कीलितोत्कल कुलम हत हूण गर्व खव्वीकृत द्रविड गुर्जर-नाथ दप्पर्म )
{ सन्दर्भ :--एपिग्राफिक इडिका - 2 पृष्ठ - 160 - श्लोक - 13 }
8. राजोरगढ अभिलेख ( 960 ई. ) :--
गुजॆर राजा मथन दैव का वि. स. ( 960 ई ) का राजोर गढ ( राज्यपुर ) अभिलेख मे महाराज सावट के पुत्र गुर्जर प्रतिहार मथनदैव को गुर्जर वंश शिरोमणी तथा समस्त जोतने योग्य भूमि गुर्जर किसानो के अधीन उल्लेखित है ।
( श्री राज्यपुराव सिथ्तो महाराजाधिराज परमैश्वर श्री मथनदैवो महाराजाधिरात श्री सावट सूनुग्गुज्जॆर प्रतिहारान्वय ...... स्तथैवैतत्प्रतयासन्न श्री गुज्जॆर वाहित समस्त क्षैत्र समेतश्च )
असली हूण चौहान ( चाऊ हूण ) हैं गुर्जर भी उनके भाई ही है
हटाएंसुशील भाटी जी ने सही लिखा है।
जवाब देंहटाएंजाट शब्द पाणिनि की व्याकरण में लिखा है कि जट झट संघते।देव संहिता में जाटो को म्हाक्षत्रिय और महादेव के गन वीरभद्र से बताया गया है।
जवाब देंहटाएंतोर सिकन्दर की पत्नी उठाने वाला देवका नैन के बारे में भी सुनिए।और नैन गोत्र सिर्फ जाटो में ही पाया जाता है।
और जाटो में चन्द्रवंश सूर्यवन्स यदुवंस नागवन्स सब है।
तो जाट बाहर से कैसे।किसी जाति से इतना भी द्वेष न करो की उसका इतिहास ही बदल दो।आपकी इन्ही हरकतों के कारण हिन्दू धर्म कमजोर हुआ ह।वरना न आज बौद्ध होता न जैन और न ही सिख और क्षत्रिय भी एक रहते
जिससे न ही भारत में इस्लाम फैलता।
ऐसे अंग्रेजो ने तो सभी जातियो को ही बाहर से ही बताया है ब्राह्मणों को थाईलैंड राजपूत जाटो कप सीथियन बताया है।पर वो कोई प्रमाण नही दे पाए।ये उनका हमे तोड़ने का षड्यंत्र था जो अब आप आगे बढ़ रहे हो।
Correct
हटाएंअगर ये सब बाहर के नहीं है तो वो जातियाँ कहाँ गई जो भीख पर जिन्दा रहती थी और यहाँ के राजाऔं को जिन्होने हराया था???
हटाएंब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्म खण्ड में एक श्लोक है -
जवाब देंहटाएंक्षत्रात्करणकन्यायां राजपुत्रो बभूव ह”
अर्थात् क्षत्रिय पुरुष से करण कन्या में जो पुत्र पैदा होवे उसे राजपूत कहते हैं।
वैश्य पुरुष और शूद्र कन्या से उत्पन्न हुए को करण कहते हैं और ऐसी करण कन्या से क्षत्रिय के सम्बन्ध से राजपुत्र (राजपूत) पैदा हुआ।
सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ व संस्कृत के विद्वान् पं० चिन्तामणि विनायक वैद्य के मतानुसार ई० सन् 800 से 1100 के बीच राजपुत्र बने हैं।
प्राचीन ग्रन्थों में न तो राजपूत जाति का उल्लेख है और न राजपूताने* का।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के गणपति खंड में गुर्जर जाति का श्री परशुराम भगवान से युद्ध
जवाब देंहटाएंइस महान जाति ने मूल रूप से अपना नाम 'गुरुतार' शब्द से लिया है जैसे कि पं। छोट लाल शर्मा (प्रसिद्ध पुरातात्विक और इतिहासकार)। वाल्मीकि द्वारा रामायण में 'महाराजा दशरथ' को 'गुरुदार' कहा जाता था। इसका मतलब है "एक बहुत उच्च श्रेणी राजा" .जिसे गुरुजन में बदल दिया गया था और बाद में गुर्जर में बदल दिया गया था। गुर्जर भारत में सबसे प्राचीन जातियों में से एक हैं
बनारस के एक प्रसिद्ध संस्कृत पंडित पंडित वासुदेव प्रसाद ने प्राचीन संस्कृत साहित्य के माध्यम से साबित किया है कि शब्द "गुज्जर" प्राचीन के नामों के बाद बोली जाने वाली थी, क्षत्रिय अन्य संस्कृत विद्वान राधाकांत का मानना है कि गुज्जर शब्द क्षत्रिय के लिए थे। वैज्ञानिक साक्ष्य ने साबित कर दिया है कि गुज्जर आर्यों से संबंधित है
राणा अली हुसैन लिखते हैं कि गुज्जर शब्द गुर्जर या गरजर शब्द से लिया गया है, जिसका प्रयोग रामायण में महर्षि वाल्मीकि द्वारा किया गया है। वाल्मीकि ने रामायण में लिखा है, "गतो दशरत स्वर्ग्यो गार्तारो" - जिसका अर्थ है राजा दशरत जो हमारे बीच क्षत्रिय थे, स्वर्ग के लिए चले गए
7th century चीनी यात्री ह्यूनत्सांग ने भीनमाल का बड़े अच्छे रूप में वर्णन किया है। उसने लिखा है कि “भीनमाल का 20 वर्षीय नवयुवक क्षत्रिय राजा अपने साहस और बुद्धि के लिए प्रसिद्ध है और वह बौद्ध-धर्म का अनुयायी है। यहां के चापवंशी गुर्जर बड़े शक्तिशाली और धनधान्यपूर्ण देश के स्वामी हैं।”
जिस देश के व्यक्ति शत्रुओं के आक्रमणों और परिश्रम आदि को नष्ट करने वाले हों उन साहसी सूरमाओं को गुर्जर कहा जाता है। शत्रु के लिए युद्ध में भारी पड़ने के कारण इन्हें पहले गुरुतर कहा गया, किसी के मतानुसार बड़े व्यक्ति के नाते गुरुजन कहकर अपभ्रंश स्वरूप ‘गुर्जर’ शब्द का चलन हुआ। पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार प्राचीनकाल में गुर्जर नामक एक राजवंश था। अपने मूल पुरुषों के गुणों के आधार पर इस वंश का नाम गुर्जर पड़ा था। उस पराक्रमी गुर्जर के नाम पर उनके अधीन देश ‘गुर्जर’, ‘गुर्जरात्रा’ और ‘गुर्जर देश’ प्रसिद्ध हुए।
गुर्जर दुनिया की एक महान जाति है। गुर्जर ऐतिहासिक काल से भारत पर शासन कर रहे थे, बाद में कुछ गुर्जर की औलाद को मध्यकाल में राजपूत कहा जाता था। राजपूत, मराठा, जाट और अहीर, क्षत्रियों के उत्तराधिकारी हैं। वे विदेशी नहीं हैं। हम सभी को छोड़कर कोई भी समुदाय क्षत्रिय नहीं कहलाता है। उस क्षत्रिय जाति को कैसे खत्म किया जा सकता है जिसमें राम और कृष्ण पैदा हुए थे। हम सभी राजपूत, मराठा, जाट और अहीर सितारे हैं, जबकि गुर्जर क्षत्रिय आकाश में चंद्रमा हैं। गुर्जर की गरिमा मानव शक्ति से परे है .. (शब्द - ठाकुर यशपाल सिंह राजपूत
जवाब देंहटाएंगुर्जर तंवर राजाओ की औलाद से तंवर राजपूत और तोमर राजपूत बने(शब्द महेंदर सिंह खेतासर राजपूत)
जाट और गुजर स्वेत और अश्वेत हुन ही हे यह 5viवि सदी तक ghumntu घुमन्तु कबीलाई लोग थे और ज्यादातर ने यहाँ के स्थाई शाशको को अपनी बेतिया दी जिसकी avaj में उन्हें कहि थोड़ा बहुत राज तथा जमीन दी गयी ,,और जो स्थाई शाशको की राजपूत संतान के आलावा कोई तोमर,दैया,प्रतिहार ,पंवार ,चौहाण,खोखर जाट तथा गुजर कहलाये !और पटियाला ,जींद ,नाभा ,भरतपुर धौलपुर आदि जाट राजघराने भाटी राजपूत राजाओ की हुन कन्याओ की संतान हे
जवाब देंहटाएंKuch bhi fekte ho Mughals ke gulam
हटाएंJaat samrat Kanishk kaswan the samrat kanishk kaswan the unka gotra kaswan tha wah ek jaat samrat kanishk kaswan the lekin kuch gurjar gujjar logo ne hamara ithihas history ko chura kar apna ithihas batane lage hai gujjar logo ne samrat kanishk kaswan ko samrat kanishk kasana bataya tha jo puri tarah se galat fake hai agar aapko bharosha na ho tu aap log google par shak vansh kya jaat the kya naam google par search karke dekh lena aapko pura sabud mil jayega gujjro ne hum jaato ka ithash ko churaya hai gujjar ek chor jati hai gujjar log dusro ke ithihas dusro ke gotra caste ko apna batate hai sharam karo gujjar log
जवाब देंहटाएंBhai tere itihas me aisa kya hai jo hme churana pde �� khulkar aap baat kr skte ho m aapko btata huu itihas .aap to khud jato ki uttpatti k bare me nhi bta skte smje.
हटाएंआज जो व्यापार कर रहा है उसे बाहर का कहोगे क्या
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