अतः यहाँ अब तक जो विषय चल रहा था वह गुरुओं,Governors की जातियों यानी ब्राह्मण जातियों का था, अब हम वंशानुगत जातियों पर,वैदिक जातियों पर आते हैं।
वर्तमान में हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि न तो हम इस जातियों में वर्गीकृत समाज को,जाति को, साम्प्रदायिक सोच को छोड़ पाने की स्थिति में हैं, न ही वैवाहिक सम्बन्धों के चलते इस सामाजिक संरचना से मुक्त होने की स्थिति में हैं, न ही आरक्षण जैसे अनेक राजनैतिक मुद्दों के चलते इस सामाजिक सुरक्षा और जटिलता से मोक्ष प्राप्त करने की स्थिति में हैं और ना ही इस व्यवस्था को सम्मानजनक तरीके से स्थापित रख पाने की स्थिति में हैं। अतः अब हमें चाहिए योगी बन इस योग्यता का परिचय दें कि वर्तमान की यथार्थ वस्तुस्थिति स्थिति और परमपरागत जीवन शैली दोनों का योग करके एक नए भारत का निर्माण करें तब हम निर्वाण को प्राप्त हो पायेंगे।
अतः अब आप अपनी अपनी जाति का हित चाहते हैं तो सर्व प्रथम आपको अपने अपने जाति धर्म के प्रति आस्थावान होना होगा यानि सकारात्मक सोच के साथ अपने परम्परागत कर्म को धर्म सझ कर स्वीकार करना होगा, ताकि न सिर्फ आपकी आगामी सन्ततियों को आरक्षित रोजगार मिलाता रहे बल्कि हँसते खेलते शिक्षा ग्रहण करने की उमर को वर्तमान की स्कूली शिक्षा के ग्रहण से मुक्ति मिले तत्पश्चात आप अपने जिले में अपनी जाति का एक प्रतिनिधि चुनें। ये सभी प्रतिनिधि किसी भी ऐसे व्यक्ति को निर्दलीय खड़ा करेंगे जो सभी को मान्य हो। इस तरह क्षेत्रीय अर्थशास्त्र और जातीय अर्थशास्त्र का योग हो जायेगा। सभी जातीय समूह एक साथ मिलकर अपने जिले का विकास आर्थिक समृद्धि के लिए करें।जब आप खुद जनसाधारण बन कर आर्थिक समृद्धि को प्राप्त कर लेंगे तो आप अभाव मुक्त होकर अपने जनप्रतिनिधि को भी भाव दे सकेंगे और जन प्रतिनिधि खोटे भाव खायेगा तो उसे दबा सकते हैं उसे वापस बुला सकते हैं।
अब एक बार चलते हैं नैतिक राजनीति में फिर जब पुनः आयेंगे तो आप से आपकी जातिधर्म और पूर्वजों के बारे में बात करेंगे।
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