आदिनाथ और पशुपतिनाथ नाम की दोनों परम्परायें शैव सम्प्रदाय की परम्परायें मानी गई हैं। दोनों में फर्क इतना ही है कि पशुपतिनाथ सम्प्रदाय वाले वनों की सुरक्षा के लिए हथियार उठाने को भी सक्षम एवं स्वतन्त्र होते हैं जबकि बौद्ध एवं जैन ऐसा नहीं करने को पाबन्द होते हैं।
जब क्षत्रिय वनों पर अतिक्रमण करते हैं या हिंसक पशु बढ़ जाते हैं तब ब्राह्मण परम्परा के परशुराम और शैव परम्परा के सन्यासी हथियार उठाते हैं। इनके हाथ में कुल्हाड़ी,त्रिशूल,भाला इत्यादि रहते हैं।
जब व्यापारी लोग वनोत्पादन का व्यापारिक दोहन करते हैं तो बौद्ध-जैन अहिंसा का मार्ग अपनाकर वनों का संरक्षण करते हैं।
शिव का एक नाम रूद्र है। रूद्र का अर्थ होता है विद्रोह करना या रौद्र रूप धारण करना जबकि रूद्र का धर्म अहिंसा बताया गया है।
अहिंसा का सही-सही शब्दार्थ होता है किसी की भी मान्यताओं,विचारों,अवधाराणाओं को अमान्य नहीं करना लेकिन अपने ध्येय की मान्यताओं को मानते रहना। इसीलिए शिव असुरों को भी वरदान दे देते हैं।
2700 वर्ष पूर्व बुद्ध-महावीर काल को हम वर्त्तमान इतिहास या आधुनिक इतिहास का आदिकाल मानते हैं।
2700 वर्ष पूर्व तथा 2500 वर्ष पूर्व के बीच के 200 वर्षों के अन्तराल में भारतवर्ष पुनः शस्य श्यामला वसुन्धरा हो गया था और जनसंख्या[वनवासी जनसंख्या] का भी काफ़ी विस्तार हो गया था।
इस बिन्दु पर एक दूसरी विचारधारा भी बनती है कि भारत वर्ष पूरी तरह हरा-भरा था और वनोत्पादन की अर्थव्यवस्था वाला यानी रेन फोरेस्ट ईकोलोजी वाला क्षेत्र था। उसी समय वे यक्ष जिन्हें यवन कहा गया था पुनः भारत आने लगे थे।
जिनका सम्राट कालयंवन आज से पांच हजार वर्ष तथा बुद्ध महावीर के समय से ढ़ाई हजार वर्ष पूर्व के महाभारत काल में हुआ था। कालयवन नामक यक्ष को मारने से शरू हुआ यह सिलसिला महाभारत के युद्ध के बाद तेज हो गया था तब उन यक्षों को कृष्ण बलराम ने एक-एक करके खदेड़ा था,जिन्होंने बाद में अपने मूल पैतृक स्थान केस्पीयन सागर क्षेत्र में माया सभ्यता का विकास किया। यह माया सभ्यता भी आज से तीन हजार वर्ष पूर्व अग्नि की भेंट चढ़ गयी थी। तब यक्ष जिन्हें पहले यवन नाम से जानते थे आज यहूदी नाम से जाने जाते हैं भारत आने लगे थे।
वे यक्ष बुद्ध महावीर के समय पुनः भारत में स्थापित होने लगे और अपनी वित्त,पूंजी,मुद्रा के माध्यम से भारत का आर्थिक दोहन करने लगे थे,जिनसे भारत वर्ष में सनातनधर्म(पारिस्थितिकी) की रक्षा करने के लिए बुद्ध एवं महावीर ने अपने आप का सृजन किया था।
चुंकि ये यक्ष जिन्हें यवन कहा गया है और वर्तमान में जिन्हें यहूदी और Jewish कहा जाता है,वित्तीय सत्ता स्थापित कर के लिए प्राकृतिक संसाधनों को बार-बार नष्ट करते आये हैं। वित्त की व्यवस्था से आर्थिक शोषण करके एक बड़े जनसमुदाय को गरीब बनाते आये हैं और इसी बिन्दु पर बार-बार मार भी खाते रहे हैं।
बुद्ध महावीर काल के दो तीन सौ वर्ष बाद सिकन्दर आया था। उसने भी मार खाई थी लेकिन अपने तरीके से इतिहास लिखवाया। पैग़म्बर मोहम्मद ने भी इन्हीं के विरूद्ध इस्लामिक आन्दोलन चलाया था।
हिटलर ने भी इनको इसलिए मारा था कि इन्होंने जर्मनी में अपनी वित्तीय सत्ता के माध्यम से जापानी औद्योगिक श्रमिकों और जर्मन टेक्नीशियन के शोषण की अति कर दी थी। लेनिन एवं मार्क्स ने भी इन्हीं के विरोध में साम्यवाद की अवधारणा विकसित की थी। इन्हीं से भारत की रक्षा करने हेतु सिद्धार्थ और वर्धमान ने अपने आप का सृजन बुद्ध एवं महावीर रूप में किया।
बुद्ध ने अपने अनुयायियों को पूर्व दिशा में काम करने को कहा,जहाँ वन क्षेत्र सुरक्षित थे तथा महावीर ने अपने अनुयायियों को भारत के पश्चिम में काम करने को कहा जहाँ रेगिस्तान अपने पाँव न सिर्फ पसार चुका था बल्कि और भी पसार रहा था।
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