विगत 2700 वर्ष के वर्त्तमान ज्ञात इतिहास में पहली बार बुद्ध एवं महावीर ने भारत को आर्थिक अभावों से मुक्त करने का अभियान चलाया और भारत वर्ष को पुनः शस्य-श्यामला-वसुंधरा बनाया और 300 वर्ष बाद चंद्रगुप्त गुप्त मौर्य को सम्राट बना कर विष्णुगुप्त [चाणक्य,कौटिल्य] ने भारत में वर्गीकृत व्यवस्था को पुनः स्थापित किया। लेकिन उसके बाद नगरीकरण और विदेश व्यापार के कारण कुल तीन सौ वर्षों में भारत में दुबारा एक तरफ भूखमरी दूसरी तरफ आलीशान अट्टालिकाओं वाला भारत विकसित हो गया। उस भारत को विक्रमादित्य ने पुनः हरा-भरा कृषि क्षेत्र बनाया उसके बाद तीसरी बार पुनः गुप्त[गुप्ता] जाति का वर्चस्व हुआ और तीसरी बार पुनः भारत अवर्गीकृत किन्तु दो वर्गों में विभाजित हो गया,एक कुपोषण, Malnutrition का शिकार भारत और दूसरा अतिपोषण,Over-nutrition का शिकार भारत। जिसको हर्षवर्धन ने बाहर निकाला जिसके लिए लगातार 100 वर्षों तक कार्यक्रम चला।
चौथी बार अब यह पुनः कुछ-कुछ स्थिति आ गयी है और निरन्तर बढ़ रही है जो अवर्गीकृत भारत में वर्ग-संघर्ष को निमंत्रण दे रही है।
हर्षवर्धन ने देखा कि वनों एवं गणराज्यों[गावों] की सुरक्षा करने वाला कोई भी वर्ग नहीं है और चारों तरफ वित्त के माध्यम से श्रम का शोषण और धर्म[कर्मकाण्ड] के नाम पर श्रद्धा भावनाओं का शोषण हो रहा है और शासक वर्ग नामक कोई वर्ग बचा ही नहीं है क्योंकि राज्य शासकों की तुलना में तो व्यापारी वर्ग अधिक शक्तिशाली हो गया। वर्तमान की तरह प्रशासनिक कार्यो का नीति निर्धारण व्यापारियों के हाथ में हो गया था।
हर्षवर्धन स्वयं तो चालीस वर्ष की आयु में ही युद्ध करते हुए मारा गया था लेकिन चूँकि सोलह वर्ष की आयु में ही राजगद्दी पर बैठ गया था अतः अपने शासन काल में अनेक परियोजनाएं शुरू करवा गया,
जिनको हम तीन भागों में वर्गीकृत कर के समझ सकते हैं।
1. तीर्थराज पुष्कर का पुनरोद्धार करवाना और 3 + 2 = 5 प्रशासनिक जातियों की देव-यज्ञ से उत्पति करना और जाति व्यवस्था; जो कि परम्परागत जॉब की व्यवस्था है, बनाना।
2. जिसे कालान्तर में छोटी-काशी कहा गया वहाँ ब्रह्म-यज्ञ के लिए पञ्च गौड़ प्रशासन के गुरुकुल स्थापित करना।[Note -पाँच पाण्डवों द्वारा पञ्चायती राज के लिए लड़ना,शिव के पञ्चाकार रूप की मान्यता को स्थापित करना इत्यादि विषय सभी ब्लॉग्स में आयेंगे। इसी सांख्य का उपयोग हर्षवर्धन द्वारा यहाँ किया गया था।]
3. वन संरक्षण के लिए बौद्धों एवं जैनों के मन्दिरों पर अतिक्रमण करके उन्हें आदिवासियों को सौंपना।
इसी कार्यक्रम को एक शताब्दी बाद सातवीं शताब्दी में आदि शंकाराचार्य[आचार्य शंकर] ने पूरे भारत और विशेषकर दक्षिण भारत में फैलाया उसी समय दक्षिण भारत में पञ्च द्रविड़ प्रशासन व्यवस्था शुरू हुयी। इसे आठवीं में गौरक्षनाथ[गोरखनाथ] ने एक अलग ऊँचाई दी। अगर आप ऐसा सोचते हैं कि आचार्य शंकर ने शास्त्रार्थ में कर्मकांडियों को हराकर उन्हें सत्ताच्युत कर दिया था और उन्होंने चुपचाप सत्ता छोड़ दी तो यह आपका भ्रम है। इस तरह कोई भी अपनी सत्ता नहीं छोड़ता है। सच्चाई यह है कि हारने के बाद भी जब वे सत्ता नहीं छोड़ते थे तो वे राजपूत वहाँ आ जाते थे और उनके भय से वे सत्ता छोड़ देते थे। ऐसे कर्मकांडियों के पीछे तमोगुणियों का बड़ा समूह होता है उन्हीं से उन्हें बल मिलता है।
श्रीमान जी हर्षवर्धन राजपूत नहीं था. हर्षवर्धन एक वैश्य परिवार से था. पहला राजपूत राजा तो राजा भोज थे. ये सब इतिहास में लिखा हुआ हैं. चीनी यात्री, ह्वेनसांग और फाह्यान आदि ने भी हर्षवर्धन को वैश्य बताया हैं.
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