जिस तरह आदिनाथ परम्परा में नागा सम्प्रदाय दिगम्बर जैन सम्प्रदाय है उसी तरह शैव सन्यासियों के पशुपतिनाथ सम्प्रदाय में भी नागा हैं। ये नागा उन सभी सम्प्रदायों में प्रथम प्रोटोकोल रखते हैं जो वनों की रक्षा करने करने के हेतु हैं। कुम्भ के स्नान में सबसे पहले स्नान करना इनका अधिकार है.
ये नागा गाँजे का नशा करने वाले तथा वसा एवं शर्करा का उपयोग नहीं करने वाले होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि इनके शरीर में शर्करा की कमी हो जाती है अतः इनमें तर्क बुद्धि और दार्शनिक चरित्र नहीं होता है। अतः ये जब हथियार उठाकर किसी सेना के सामने भी आ जाते हैं तो सेना पर भारी पड़ते हैं। वैसे तो भारत ही नहीं विश्व की सभी मानव सभ्यताओं में हाथ में कोई न कोई हथियार Weapon or Tools रहते हैं, लेकिन इन नागा सन्यासियों के हाथों में अनेक प्रकार की डिजाईन किये हुए कुन्त [धारदार हथियार] रहते हैं और भारतवर्ष को बचाने वालों में ये सदेव निर्णायक भूमिका निभाते आ रहे हैं।वर्तमान में भी इनका धर्म बनता है नष्ट हो रहे वनों को सुरक्षित करना लेकिन ये भी अपनी मूल अवधारणा से भटक गये हैं।
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