वर्त्तमान के आदिकाल[बुद्ध-महावीर काल] के बाद 200 वर्षों तक ईको-चैनल या ईकोसिस्टम इस स्थिति तक आ गया था जिसको लेकर कह सकते हैं कि सनातन धर्म पुनः अपनी निरन्तरता को प्राप्त हो गया था।
यह काम बुद्ध-महावीर द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिए चलाये आन्दोलन का परिणाम था।
तत्पश्चात् जब चाणक्य का उदय हुआ तो चाणक्य ने तीनों प्रकार की अर्थव्यवस्था को एक दूसरे का पूरक बना दिया था।
1. वनों से वनौषधियाँ मिलती रहीं।
2. गण राज्यों में कृषि और पशुपालन होता रहा। उस समय कृषि एवं पशुपालन दोनों दो अलग-अलग जातीय वर्ग करते थे। पशुपालक ही वनों में अपने पशु चराने जाते और वनौषधियों का संग्रह करके लाते थे। पशु भी बेचते थे।
3. औद्योगिक नगरों का विकास करके निर्माण एवं वाणिज्य यानी ‘‘ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्रीज‘‘ की अर्थव्यवस्था को पुनः उच्च स्थान दिलाया। क्योंकि पूर्व की त्रासदी को भुला दिया गया। यह मामला सौ वर्षों तक चला।
तत्पश्चात् अशोक का उदय हुआ उसने भारत-वर्ष एवं भारत-देश[भारतीय गण राज्यों] को भारत राष्ट्र बनाया। यहाँ तक तो फिर भी ठीक था लेकिन जब कूटनीति होती है तो उसका अच्छा परिणाम तभी निकलता है जब वह कूटनीति कृष्ण और चाणक्य की तरह स्व-विवेक से अपनाई जाये। लेकिन यह कूटनीति अशोक की ख़ुद की नहीं थी कि अपनी सेना को अहिंसाधर्म अनाने को प्रेरित किया जाये और उन्हें व्यापारी बना दिया जाये।
यदि यहाँ एक विद्वान व्यक्ति स्व-विवेक से निर्णय लेता तो सैनिक कर्मचारियों को कृषि कार्यों में लगा सकता था। लेकिन उसकी कुटिलता यह थी कि उसने कलिंग विजय में हुई हत्याओं को लेकर अपने हृदय परिवर्तन के नाम से यह कार्य किया। पुनः कहता हूँ कि हिरोशिमा और नागासाकी की घटना के बाद तो किसी का हृदय परिवर्तन नहीं हुआ जो भला अशोक का होता।
एक बहुत-बड़े वर्ग को व्यापार में झोंक कर और विदेश व्यापार को बढ़ावा देकर उसने जो किया उसका परिणाम यह हुआ कि दो सौ वर्षा के अन्दर-अन्दर बौद्ध-जैन व्यापारियों ने उसी जंगल को बेच खाया जिसको बुद्ध एवं महावीर ने पनपाया था।
इस स्थिति के लिये यह कहा जायेगा कि अशोक ने सिर्फ़ व्यापार को महत्व देकर और अपने सैन्य ख़र्च को समाप्त करके जिस सम्पन्नता की नींव डाली उसी मार्ग को और उसी लक्ष्य को उसने सब कुछ समझ लिया था।
लेकिन विक्रमादित्य ने जिस आन्दोलन या जिस कार्यक्रम की नींव डाली, उसमें उसने निर्माण एवं वाणिज्य की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह नकार दिया और वेदों के उस बिन्दु पर अपना ध्यान केन्द्रित कर दिया जो वैज्ञानिक शोध संबंधी था।
[Note- वेद शब्द का जहाँ कहीं भी उपयोग होता है वहाँ आप वेदों की दो धाराओं को एक साथ ध्यान में लायें। एक धारा वेदत्रयी की है जो पूरी तरह शरीर,सन्तति और साम [self harmonious] सम्बन्धी होती है। दूसरी धारा अथर्ववेद की है जिसमें आयुर्वेद की औषधि निर्माण और चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ वास्तु निर्माण की सभी धाराएँ आ जाती हैं।
विक्रमकाल में वास्तु निर्माण की धारा की पूरी तरह अवहेलना की गयी क्योंकि वास्तु[वस्तु ] से प्राप्त सुख सिर्फ भ्रम होता है जो ब्रह्म द्वारा सुख को महसूस करने की संवेदनशीलता और दुःख को बर्दाश्त करने की प्रतिरोधक क्षमता दोनों के स्तर को हानि पहुंचाता है।
आज चाहे वस्तुओं के उपभोग को ले लें या भेषज द्रव्यों Pharmaceutical substances के भोग को ले लें या भोजन के भोग Enjoyment of food को ले लें या फिर सम-भोग को ले लें सभी तरफ यही देखने में आता है की सभी अतृप्त हैं,किसी में भी तृप्ति का भाव नहीं है सभी में भयानक तृष्णायें और अभाव विद्यमान हैं।
विक्रम का सोचना निःसन्देह उचित था क्योंकि उसका कार्यक्रम भारत की मूल सांस्कृतिक अवधारणा पर केन्द्रित था अतः प्रत्येक दृष्टिकोण से वह उचित था तभी तो उस समय की समाज व्यवस्था में किसी वर्ग में विपन्नता और अभाव नहीं रहा। पृथ्वी एक तरह से स्वर्ग बन गई थी।
लेकिन इस तथ्य को जानते हुए भी कि जीवन का मूल लक्ष्य सत-चित्त-आनन्द घन की स्थिति को प्राप्त करना है जिसे एक शब्द में सुख कहा जाता है फिर भी एक भौतिक देह-धारी भौतिक-विज्ञान के विकास के चमत्कारी रूप से आकर्षित हुए बिना नहीं रह सकता, चाहे वह विकास उसके सुख को नष्ट करे।
इसी कारण ब्राह्मण-क्षत्रियों के भारत और यक्षराक्षसों के भारत में रस्साकस्सी चलती रहती है। इसी का परिणाम था कि चन्द्रगुप्त और विष्णुगुप्त चाणक्य का काल गुप्त काल बन कर पुनः वैश्वीकरण काल आ गया।
अतः इतिहास से सबक लेते हुए हमें अब ऐसा भारत बसाना है जिसमें एक तरफ तो किसान-क्षत्रियों और अध्यापक ब्राह्मणों का भारत भी अपनी समृद्ध संस्कृति के साथ सुरक्षित रहे तो दूसरी तरफ एक ऐसा वैभवशाली सभ्य भारत हो जो पूरी तरह उदारता के साथ[उदारीकरण के साथ] वैश्वीकरण में अग्रणी राष्ट्र हो।मेरे ख़याल से इस संरचना में किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए अतः भारत की राजनीति को भी दल दल मुक्त करने कराने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें