नष्ट होने वाली दुनिया से तात्पर्य यदि पृथ्वी या धरती से है,तब तो यह एक मूर्खतापूर्ण अवधारणा या कल्पना है!
दुनिया से तात्पर्य जगत(जीवजगत) से है तो यह जिज्ञासा का एक बिंदु है कि दुनिया का कालचक्र क्या है!
लम्बे कालचक्र को जानने से पूर्व यह जानना चाहिए कि माया सभ्यता के कैलेंडर की गणना का आधार क्या है और माया सभ्यता का ख़ुद का इतिहास क्या है,जो समाप्त हो गयी फिर भी दुनिया के फिर से समाप्त होने की भविष्यवाणी बता गयी!
उस भूतकाल का अध्ययन,जो वर्तमान से तुलना करने जैसा भी होता है और भविष्य भी होता है,तीन विधियों से होता है।
1. धार्मिक मान्यताओं एवं पौराणिक साहित्य से
2. श्रुति परम्परा से अर्थात पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जाने वाली कथाओं,क़िस्से-कहानियों एवं लिखित ऐतिहासिक साहित्य के माध्यम से।
1. अपने पूर्वजों की खोज करने और उन पर गर्व करने की मानसिकता के चलते यह मानसिकता भौतिकवादी तमोगुणी समाज में होती है।
अध्ययन का मन्तव्य एक सुन्दर सामाजिक ढाँचे की रचना करने के परिप्रेक्ष्य में समझें ताकि आत्म-अनुशासित रह कर नैतिकता के आधार वाली नीति पर चलने वाले समाज की रचना कर सकें। इसके लिए हमें इतिहास को एक विशेष दृष्टिकोण से समझना है। ताकि हम पूर्व की उन घटनाओं का अवलोकन करें जब भारत में रोज़गार की गारण्टी के लिए जाति प्रथा बनायी गयी ताकि वंश परम्परा के गुणसूत्र [Dynasty Chromosomal]के साथ अपने जॉब की शिक्षा के लिए शिक्षा संस्कार[Educational Values,Community values,Work Culture]हेतु व्यापारिक शिक्षण संस्थाओं में न जाना पड़े। अतः हम उन घटनाओं का अध्ययन करें और उन घटनाओं से सबक लें जिन घटनाओं के परिणामस्वरूप हम इस बुरे हालात में पहुँचे हैं कि आज न तो जाति को प्रथा बनाने के उद्देश्य को समझ पा रहे हैं और न ही उस का राजनैतिक लाभ उठा पा रहे हैं। यह भी जानें कि उन घटनाओं से पहले यह जाति प्रथा कैसी थी और उसके क्या-क्या लाभ और सुविधाएँ थीं ताकि हम वर्तमान में ऐसा कार्यक्रम बना सकें जो हमें सन्तुलित समाज व्यवस्था बनाने के लिए एक अवधारणा(दृष्टिकोण) दे सके।