एक तो यह कि बुद्ध एवं महावीर के पहले का इतिहास सिर्फ अनुमान अथवा रामायण-महाभारत कथाओं की पृष्टभूमि पर ही उपलब्ध है.
क्या आज राजकीय सत्ता,राज्य का उत्तराधिकार, राष्ट्र की सीमाओं पर युद्ध इत्यादि नहीं होते? क्या सैनिक राम की भाँति अपने परिवार छोड़ कर सीमा पर लड़ने नहीं जाते ? जो आपको राम की जन्मभूमि के लिए लड़ने की ज़रूरत महसूस हो रही है !
क्या आज गौपालन नहीं होता या कृषि नहीं होती ? जो आपको कृष्ण-बलराम की जन्म भूमि पर राजनीति करनी चाहिए! राम और कृष्ण तो सदैव वर्तमान हैं। यह तो आपकी कृपणता है कि आप गौपालक और किसान को कृष्ण-बलराम की श्रेणी में नहीं रख पा रहे हैं। वहीं गौपालकों एवं किसानों की हीनता है कि वे कृष्ण बलराम को आदर्श नहीं मान कर,आदरणीय और अनुकरणीय नहीं मान कर चित्र और प्रतिमा में मात्र पूजनीय मानते हैं.
संस्कृति के रूप में इतिहास तो जो विगत 2600 वर्षों का है और जिसकी प्रामाणिक जानकारियाँ है उन जानकारियों को प्रकाश में लाना ही पर्याप्त है। उन जानकारियों को झुठलाकर,ग़लत इतिहास पढ़ाया जाता है और यहाँ तक कि उस इतिहास को ग़ायब भी कर दिया जाता है जो इतिहास भारत को विश्व की अन्य सभ्यता-संस्कृतियों से अलग मौलिकता का भान कराता है।
आपको वैदिक इतिहास और सभ्यता के नाम पर भ्रमित भी किया जाता रहा है. जबकि वैदिक सभ्यता तो बार-बार उत्थान और पतन को प्राप्त होती है. इसके विपरीत भारत में ब्राह्मण संस्कृति का सनातन आचरण ही आपको विश्व में अलग प्रतिष्ठा दिलाता है।
लेकिन जिस तरह हरिजन शब्द जाति विशेष को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए दिया गया था जो आज पूर्वाग्रहों का शिकार हो गया है, इसी तरह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, देव,रक्षस,यक्ष,भूतगण इत्यादि अनेकानेक शब्द हैं ये सभी शब्द शरीर की प्रकृति और उसके प्रभाव से निर्मित प्रवृति के विषयान्तर्गत आने वाले वैज्ञानिक शब्दावली के शब्द हैं. ये शब्द भी पूर्वाग्रहों में बँध गए हैं.
आज मुझ ज्ञान के देवता देवर्षि नारद को आदरणीय-अनुकरणीय विद्वान के स्थान पर विदूषक बना दिया गया है. उसी तरह ब्राह्मण जो कभी समाज का ब्रेन हुआ करता था आज का ऐसा स्कूल टीचर हो गया है जो समाज में दोयम दर्ज़े का माना जाता है. आज का क्षत्रिय (प्राकृतिक उत्पादक वर्ग) इतना दीन-हीन हो गया है कि ग़रीबी की सीमा रेखा से नीचे आ गया है ।
एक तरफ समाज की यह स्थिति है,दूसरी तरफ आपकी फ़ितरत ही कुछ ऐसी हो गयी है कि इन शब्दों के साथ-साथ धार्मिक सम्प्रदायों के नाम और उन सम्प्रदायों के धर्मावलम्बियों द्वारा काम में लिए जाने वाले शब्दों के अर्थ जाने बिना ही उनको लेकर आपके दिमाग़ में तरह-तरह के फ़ितूर उठते रहते हैं और सामाजिक वैमनस्य फैलाते रहते हैं।
क्योंकि आप ब्राह्मण बन कर ब्रह्म में रमण करने के स्थान पर भ्रम में भ्रमण करने वाली मानसिक ऐयाशी में फँस जाते हैं और पौराणिक व् परम्परागत जानकारियों के उटपटांग अर्थ निकालते रहते हैं और धार्मिक चर्चा के नाम पर भ्रामक अवधारणाओं में भ्रमण करते रहते हैं.
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