बुद्ध-महावीर ने वनों की सुरक्षा के लिए तब अपना-अपना राज्यपद त्याग कर वनों की रक्षा करने हेतु अवधारणायें दी और धर्म का प्रचार किया था.
बुद्ध ने जिस बोधिसत्व को प्राप्त करने की बात कही थी उसको त्रिगुणात्मक प्रकृति में सत्व-रज-तम में प्रथम क्रम में रखा गया है और साधारण भाषा में सात्विक बुद्धि कहा गया है।
सत का अर्थ है बाँधने वाला भाव/बल जिसे आकर्षण बल कहा जाता है। सत में आकर्षण-विकर्षण दोनों भाव होते हैं।
सत से दो शब्द बनते हैं सत्य और सत्व। सत्य निराकार होता है क्योंकि वह भाव /इवेंट है जबकि सत्व उस तत्व / एलिमेंट को कहा गया है जो सत की गुणधर्मिता रखता है।
सत्व भी दो वर्गों में वर्गीकृत होता है। एक सत्व जो कफ / श्वेतवसा / व्हाईट फ्लूड के नाम से भी जाना जाता है। इस सत्व की मात्रा पर ही आपमें बौद्धिक बल, चातुर्य, उचित-अनुचित का ज्ञान इत्यादि का स्तर निर्भर करता है। बुद्ध ने पाली भाषा में बोधिसत्त्व की प्राप्ति का तरीका बताया था।
सत्व का दूसरा रूप बीज होता है। आपने इसबगोल सत्व इत्यादि नाम तो सुन ही रखे होंगे. किसी भी बीज के छिलके के अन्दर जो पौष्टिक तत्व होते हैं उसको सत्व कहा गया है। वनस्पति का सत्व बीज होता है जिसमें वह अपने पूर्वजों के गुणसूत्र लेकर चलता है।उसी तरह प्राणियों के गुणसूत्र /क्रोमोज़ोम लेकर चलने वाले सत्व को वीर्य कहा गया है। वीर्यवान से महावीर्यवान बने महावीर ने जेनेटिक्स का ज्ञान वनों में रहने वाले आदिवासियों को दिया.
मह़ावीर ने प्राकृत भाषा में यह ज्ञान दिया था. प्राकृत और पाली भाषा से ही संस्कारित होकर संस्कृत विकसित हुई थी. संस्कृत का जीव व जनन शब्द जिन से बना है। जिन से लेटिन में जेनेटिक्स वाला जीन शब्द बना तो ग्रीक फ़िलोसोफ़ी में आत्मा का प्रतीक जिन्न शब्द बना।
बुद्ध -महावीर के प्राकृत धर्म और वर्षावनों / रेन-फोरेस्ट में वनोत्पादन की अर्थव्यवस्था और शरीर में सत्व की मात्रा और जिन शब्द के विभिन्न अर्थों की जानकारी इत्यादि नहीं होने पर आप बौद्ध-जैन दर्शन के नाम पर जो मानसिक श्रम करते हैं वह एक तरह की मानसिक ऐयाशी मात्र है।
ऐहित्य 3 : बुद्ध महावीर की शिक्षाएं
धर्म की सुस्पष्ट परिभाषा शिक्षा है। जैसा कि ब्रह्म-परंपरा का सम्बन्ध बुद्धि से और वेद-परम्परा का सम्बन्ध शरीर विज्ञान से है जो कि एक दुसरे के पूरक हैं। उसी दृष्टिकोण से बुद्ध-महावीर की शिक्षाओं को वर्गीकृत करें।
सबसे पहले तो दोनों की शिक्षा यानी धर्म को एक बिंदु पर सम करें, वह बिंदु है "प्राकृतधर्म"। दोनों धर्म वर्षावनों की सुरक्षा,संरक्षण,संवर्धन के विषय से और वनोत्पादन की अर्थव्यवस्था से सम्बन्ध रखते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें