आज से लगभग 2700 वर्ष पूर्व बुद्ध और महावीर ने प्राकृत धर्म की पुनः स्थापना की क्योंकि आज से लगभग साढे तीन-चार हजार वर्षों पूर्व आज के ईराक-टर्की-इजिप्ट के बीच के क्षेत्र में एक बहुत परिष्कृत औद्योगिक नगरों का क्षेत्र फैला था। भारत में आज से पाँच हज़ार वर्ष पहले कंस,दुर्योधन इत्यादि द्वारा भारत की पश्चिमी दिशा के काल यवन एवं पूर्वी दिशा के जरासंध जैसे राष्ट्राध्यक्षों से आर्थिक संधि करके भारत में भी औद्योगिक-नगरों का विस्तार किया गया था।
कृष्ण ने कूटनीतिक चालों द्वारा एक युद्ध का आयोजन करवाया और इस भौतिकवाद से ग्रसित विकास को नष्ट किया था और रोक लगाई।
अधिकांशतः महाभारत तथा कृष्ण के परिपे्रक्ष्य में युद्ध और गीता का उपदेश ही प्रचलित जानकारियों का केन्द्र है। लेकिन असली काम तो युद्ध के बाद में कृष्ण ने किया था और वह काम था यक्षों को भारत से खदेड़ना।
वर्तमान की यह मानव सभ्यता वैदिक सभ्यता है किन्तु यह देवों के स्थान पर यक्ष एवं रक्षसों की सभ्यता है। यक्ष उस चरित्र का नाम है जो अनुबन्ध में बाँध कर शासन करते हैं और यदि अनुबन्ध का उल्लंघन होता है तो राक्षस सेना द्वारा बल प्रयोग करवा कर अनुबन्ध मानने को मजबूर किया जाता है।
कृष्ण ने रक्षसों को तो युद्ध में मरवा दिया और यक्षों को यह अल्टिमेटम दिया कि या तो आप भारत को छोड़ कर चले जाओ या फिर वित्त के माध्यम से आर्थिक शोषण को बन्द करके भारत में पशुपालन और कृषि की अर्थव्यवस्था वाली मुख्यधारा में आ जाओ अर्थात सनातन धर्म को अपना लो।
इस तरह भारत तो सुरक्षित हो गया लेकिन यरूशलम में यक्षों ने अपने कार्यालय स्थापित किये जो आर्थिक राजधानी बनी और अपने चारों तरफ के क्षेत्र जिसमें अफ्रीका के उत्तर पूर्व के समुद्रतट का क्षेत्र और पश्चिम एशिया के ईराक,टर्की,जोर्डन,सीरिया,इज़राईल के क्षेत्र में तथा ग्रीस के क्षेत्र में औद्योगिक अर्थव्यवस्था को तेज गति दी।
कृष्ण का जो माखन-चोर का चरित्र है,उसे जो लोग भक्ति-भाव के नाम पर आँख(दिमाग़) बंद करके स्वीकार कर रहे हैं वे भी उनके इस आचरण के पीछे छिपे मन्तव्यों से अनभिज्ञ हैं। और जो धर्म सम्प्रदाय जैसे शब्दों को अपने कुंठित विचारों में लादकर इसे एक काल्पनिक एवं मिथकीय कथा मात्र मान रहे हैं,वे भी सच्चाई से अनभिज्ञ हैं ।
गौपालक कृष्ण और हलधर बलराम दो नायकों के इर्द-गिर्द घूमती महाभारत कथा भारत के इतिहास की वह कथा है जो सनातन है। कृष्ण ने उस आर्थिक व्यवस्था का विरोध किया था जिसमें दूध,दही,मक्खन का उत्पादन तो गांवों में होता है लेकिन मुद्रा(करेंसी) के लालच में यह पौष्टिक आहार नगरों में चला जाता है और ग्रामीण जन आर्थिक एवं शारीरिक दोनों पक्षों में बलहीन होते जाते हैं ।
यहाँ जो प्रसंग चल रहा है,उसी के परिप्रेक्ष्य में पुनः ज़िक्र है कि जो औद्योगिक सभ्यता-संस्कृति पाँच हज़ार वर्ष पूर्व परवान पर चढ़ रही थी,जिसे माया सभ्यता भी कहा गया,जिसका एक रूप जो बौद्धिक राजधानी के रूप में था,ग्रीक तक फैल गया था,जहाँ से यूरोप में विस्तार हो रहा था; वह साढ़े तीन हज़ार वर्ष पूर्व ताश के पत्तों से बने महल की तरह ढह गई थी।
आपने ग़ौर किया होगा कि पारसी जिन्हें Indian Jewish भी कहा जाता है वे अग्नि की पूजा करते हैं, इनके धर्म स्थल अगियारी कहलाते हैं। यहूदी भी अग्नि की पूजा करने के साथ-साथ रोटी की भी पूजा करते हैं।
प्रथम वेद ऋक्-वेद के प्रथम छंद में कहा गया है ‘‘अग्नि मिळे पुरोहितम‘‘ अर्थात् वैदिक सभ्यता की शुरूआत में जिस अग्नि की पूजा की जाती है, वह अग्नि पुरोहित को यज्ञशाला (पाक शाला) में भोजन पकाना प्रारम्भ करने के लिए चाही गई।
लेकिन उसी अग्नि की जब औद्योगिक ईकाईयों में प्रोसेस के लिए बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है और ऊर्जा के नाम से उस अग्नि का अति-उत्पादन हो जाता है तो वही अग्नि वैदिक सभ्यता के अन्त का कारण बनती है। इसलिए प्राकृत धर्मानुयाई मुनि अग्नि का त्याग करते हैं।
साढे़ तीन हज़ार वर्ष पूर्व जब माया सभ्यता का विनाश हुआ तो यह क्षेत्र पूरी तरह वनस्पति विहीन और गर्म रेगिस्तान में बदल गया। क्योंकि सिन्धु नदी के उस पार से पूरे पश्चिम एशिया में फैले औद्योगिक नगर इस विनाश में नष्ट हुए। राजस्थान तक इसका प्रभाव पड़ा।
इस तरह वर्तमान में जिस सभ्यता-संस्कृति को हम तहस-नहस होते देख रहे हैं या कहें कि आज जिस असभ्यता और अपसंस्कृति का विकास हो रहा है वह इस बात का संकेत है कि मानवीय सभ्यता-संस्कृति का पुनः अन्तकाल आ गया है क्योंकि इसी विकास से विषमता बढ़ रही है। इस सभ्यता संस्कृति का आदिकाल आज से साढे़ तीन हज़ार वर्ष पूर्व माना जायेगा। लेकिन चुंकि हमें जिस इतिहास की जानकारी है वह 2700 वर्ष पूर्व से यानी बुद्ध एवं महावीर से शुरू होता है।
इस तरह इतिहास का एक बिन्दु है 'काल खण्ड' जो इस प्रकार है।
[1] बुद्ध महावीर काल लगभग 300 वर्ष तक चला और भारत वर्ष पुनः हरा-भरा हुआ,अथवा यदि हरा-भरा था और यवनों ने आकर यहाँ के की वनसंपदा को हानि पहुंचानी शुरू की तो उसकी सुरक्षा हुई और संवर्धन हुआ।
आज से 2700 वर्ष पूर्व, 700 वर्ष ईसापूर्व से
आज से 2600 वर्ष पूर्व, 600 वर्ष ईसापूर्व और
आज से 2500 वर्ष पूर्व, 500 वर्ष ईसापूर्व तक
[2] चाणक्य-चन्द्रगुप्त काल लगभग 100 वर्ष तक माना जाये तो भारतवर्ष पुनः राष्ट्र की अवधारणा में बंधा लेकिन वह वर्गीकृत था। चाणक्य के नेतृत्व में भारत राष्ट्र में औद्योगिक क्रान्ति और नगरीकरण हुआ।
आज से लगभग 2400 वर्ष पूर्व, 400 वर्ष ईसापूर्व
[3] अशोक काल लगभग 200 वर्ष तक चला उस समय भी भारतवर्ष और देश पर आज ही की तरह भारतराष्ट्र हावी हो गया था।
आज से 2300 वर्ष पूर्व,300 वर्ष ईसा पूर्व और
आज से 2200 वर्ष पूर्व, 200 वर्ष ईसा पूर्व
[4] विक्रमादित्य का कालखण्ड लगभग 300 से 400 वर्ष तक चला इसमें नगरीकरण,औद्योगिकीकरण और भौतिकवादी विकास वाले राष्ट्र की अवधारणा पूरी तरह नकार दी गयी लेकिन विज्ञान के क्षेत्र में एक से बढ़ कर एक प्रतिभाएं विकसित हुईं। आज आप भारत के जितने भी वैज्ञानिकों और वैज्ञानिक शोधों के बारे में पढ़ते सुनते हैं वे सभी विक्रमादित्य द्वारा स्थापित व्यवस्था के काल खंड में हुए।
आज से 2100 वर्ष पूर्व,100 वर्ष ईसा पूर्व से
आज से 2000 वर्ष पूर्व, 0 वर्ष ईसा विक्रम और
आज से 1900 वर्ष पूर्व, पहली सदी और
आज से 1800 वर्ष पूर्व, दूसरी सदी तक
[5] लगभग 300 वर्ष तक चले गुप्तकाल में पुनः वाणिज्य व्यापार चला और भारत सोने की चिड़िया बना लेकिन सभी वनखंड नष्ट हो गए और निर्माण और निर्यात की ऐसी आंधी आई की निर्माण से जुडी सभी जातियां पोष्टिक आहार की कमी और प्रदूषित वातावरण में रहने से छूत की बीमारियों से ग्रसित हो गयी और इन्सान ने इन्सान को अछूत बना दिया।
आज से 1700 वर्ष पूर्व, तीसरी सदी से
आज से 1600 वर्ष पूर्व, चौथी सदी और
आज से 1500 वर्ष पूर्व, पांचवी सदी तक
[6] हर्षवर्धन द्वारा प्रारम्भ राजपूतकाल और ब्राह्मण प्रशासनिक पद्धति का सांस्कृतिक काल जो सोलहवीं सदी तक चला।
आज से 1400 वर्ष पूर्व, छठी सदी से
आज से 1300 वर्ष पूर्व, सातवीं सदी
आज से 1200 वर्ष पूर्व, आठवीं सदी
आज से 1100 वर्ष पूर्व, नवीं सदी
आज से 1000 वर्ष पूर्व, दसवीं सदी
आज से 900 वर्ष पूर्व, ग्यारवीं सदी
आज से 800 वर्ष पूर्व, बाहरवीं सदी
आज से 700 वर्ष पूर्व, तेहरवीं सदी
आज से 600 वर्ष पूर्व, चौहदवीं सदी
आज से 500 वर्ष पूर्व, पन्द्रवीं सदी तक
[7] मुगलकाल तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनियों द्वारा आर्थिक शोषण काल
आज से 400 वर्ष पूर्व, सोहलवीं सदी
आज से 300 वर्ष पूर्व, सत्रहवीं सदी
आज से 200 वर्ष पूर्व, अट्ठारहवीं सदी
[8] आज से 150 वर्ष पूर्व 1857 के बाद की उन्नीसवीं सदी से ब्रिटिश शासन द्वारा आर्थिक शोषणकाल
[9] वर्तमान काल बीसवीं सदी का उत्तरार्ध अपनों ही द्वारा भारतीय सभ्यता संस्कृति के आत्मपतन का काल।
यह काल-खण्ड इस लिए दर्शाया गया है ताकि इसे ईसा पूर्व या ईस्वी संवत से समझना चाहें तो आप लगभग समझें। यहाँ मैं संस्कृति-सभ्यता का इतिहास एक विशेष उद्धेश्य से बता रहा हूँ। अतः इसे उसी दृष्टिकोण से समझने का कष्ट करें जो मेरा उद्धेश्य है। इसे किसी सत्ताधीश के सत्ता पर बैठने और उतरने तथा उसकी दिनांक और वर्ष जैसे क्षुद्र एवं महत्वहीन तथ्यों पर नहीं जायें।
इन ऐतिहासिक काल खण्डों में हुए परिवर्तन का जब हम सभ्यता-संस्कृति के दृष्टिकोण से अवलोकन कर रहे हैं तो इसमें सर्वाधिक घनत्व(डेनसिटी) वाले तथ्य धर्म एवं धार्मिक सम्प्रदायों के उत्थान पतन से जुड़े तथ्य और घटनाऐं ही होंगी।
इस भूमिका के माध्यम से जो मैं बताने जा रहा हूँ,उसमें सबसे बड़ी अड़चन कहें या रोचकता एक बिन्दु पर आएगी,वह है भाषा में शब्दों का उपयोग।